प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘हो गई है पीर पर्वत-सी’ नामक आधुनिक कविता से लिया गया है जिसके रचयिता दुष्यन्त कुमार हैं।
संदर्भ : प्रस्तुत कविता में कवि भारतीय जनता की पीड़ा को पर्वत जैसी विशाल बताते हुए उसे क्रान्तिकारी बदलाव के लिए आह्वान कर रहे हैं।
भाव स्पष्टीकरण : कवि कहते हैं कि देश की राजनीतिक व्यवस्था में चरम सीमा तक पहुँच चुके भ्रष्टाचार, अवसरवाद एवं कुशासन से तंग आ चुकी जनता को बदलाव के लिए तैयार हो जाना चाहिए। कवि जनता से बदलाव के लिए आह्वान करते हैं। वे कहते हैं- अगर व्यवस्था के प्रति आपके मन में आग है, गुस्सा है तो उसे प्रकट कीजिए। परिवर्तन के लिए दूसरों का इंतजार नहीं करना चाहिए। अगर इतने पर भी कोई चुप बैठा है या उसे तकलीफ नहीं हो रही है तो ऐसे में आपको भी चुप नहीं रह जाना चाहिए। आप आगे बढ़िए। लोग धीरे-धीरे आपके पीछे आएंगे। देश की वर्तमान व्यवस्था को मूल से बदले बिना परिवर्तन नहीं होगा। इसलिए आमूल-चूल परिवर्तन के लिए कोशिश कीजिए।
विशेष : भाषा खड़ी बोली। गज़ल में आपात काल पूर्व भारत की राजनीतिक स्थिति की आहटें महसूस की जा सकती है।