परेश ने दादा जी से कहा कि बेला अपनी अलग गृहस्थी बसाना चाहती है। उसका इस घर में मन नहीं लगता। अगर आप बाग वाले मकान का प्रबंध कर दें ….. जहाँ वह स्वेच्छापूर्वक जीवन बिता सके। दादा जी कहते हैं कि ये उनके जीते जी असंभव है। तुम चिंता न करो। मैं सबको समझा दूंगा – घर में किसी को तुम्हारी पत्नी का तिरस्कार करने का साहस न होगा। कोई उसका समय नष्ट न करेगा। ईश्वर की असीम कृपा से हमारे घर सुशिक्षित, सुसंस्कृत बहू आई है तो क्या हम अपनी मूर्खता से उसे परेशान कर देंगे? तुम जाओ बेटा, किसी प्रकार की चिंता को मन में स्थान न दो। मैं कोई-न-कोई उपाय ढूँढ निकालूँगा। तुम विश्वास रखो, वह अपने आपको परायों में घिरी अनुभव न करेगी। उसे वही आदर-सत्कार मिलेगा, जो उसे अपने घर में प्राप्त था। इस प्रकार दादा जी ने परेश को मनाया।