बेला एक प्रतिष्ठित तथा संपन्न परिवार की सुशिक्षित लड़की है। उसका विवाह परेश से हो जाता है। वह ससुराल में आकर अपने को नये घर के अनुसार ढाल नहीं पाती। वह पढ़ी-लिखी रहने के कारण सबको गँवार, नीच, हीन दृष्टि से देखती है। घर में छोटी बहू होने के कारण सब उसकी आलोचना करना व उसे आदेश देना अपना कर्त्तव्य समझते हैं। वह आजाद ख्याल की है। उसे दूसरों का हस्तक्षेप तथा दूसरों की आलोचना पसंद नहीं है। वह परेश से अलग गृहस्थी बसाने के लिए कहती है। दादा जी परिवार के सभी सदस्यों को बुलाकर कहते हैं कि कोई बेला का अनादर नहीं करेगा। परिवार के सभी लोग अब उसका आदर करने लगते हैं। वह आदर नहीं बल्कि सबके साथ मिल-जुलकर काम करना चाहती है। जब उसे पता चलता है कि यह बदलाव दादा जी के कहने से हुआ है तो वह भावावेश में दादा जी से कहती है – ‘आप पेड़ से किसी डाली का टूट कर अलग होना पसंद नहीं करते, पर क्या आप ये चाहेंगे कि पेड़ से लगी-लगी वह डाली सूख कर मुरझा जाय