श्रीधर का यह कथन ‘अहंकार उन्नति में बाधक है’ बहुत ही सार्थक प्रतीत होता है। भारवि श्रीधर का पुत्र था। वह शास्त्रार्थ में पंड़ितों को पराजित करता जा रहा था। उसके साथ ही साथ उसके अंदर घमंड की भावना बढ़ती जा रही थी। यह श्रीधर के बर्दाश्त के बाहर था। उन्होंने भरी सभा में अपने पुत्र को उग्र रूप से ताड़ना दी। उसे महामूर्ख, दंभी और अज्ञानी कहा। वे उसका भला चाहते थे। वे नहीं चाहते थे कि अहंकार या दंभ उसके पुत्र के मार्ग मे बाधक बने। अहंकार व्यक्ति को आगे बढ़ने से रोकता है। उसकी प्रतिभा का भी एक प्रकार से हनन करता है। अनुशासन के बिना व्यक्ति जीवन में आगे नहीं बढ़ सकता और वह आगे बढ़ भी गया तो अपने जीवन में सफल नहीं हो सकता।