ग्लानि और जीवन के संबंध में श्रीधर के विचार इस प्रकार हैं – ग्लानि से जीवन उत्पन्न नहीं होता। जीवन से ग्लानि उत्पन्न होती है। इस तरह ग्लानि प्रधान नहीं है, जीवन प्रधान है। श्रीधर अपने पुत्र भारवि से कहते हैं कि जब तुम जीवन के अधिकारी हो तो जीवन की शक्ति से ही ग्लानि को दूर करो, तलवार की अपेक्षा क्यों करते हो? तुम्हारे हाथों में लेखनी चाहिए, तलवार नहीं। ग्लानि काले बादल के समान है जो जीवन के चंद्र को मिटा नहीं सकता। कुछ क्षणों के लिए उसके प्रकाश को रोक ही सकता है। ग्लानि के पोषण के लिए ब्रह्मदेव की आवश्यकता नहीं है।