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in Class 12 by kratos

विद्यार्थी और अनुशासन पर निबंध लिखिए :

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by kratos
 
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अनुशासन का मानव जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। शिक्षा – क्षेत्र में ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक क्षेत्र में भी अनुशासन का बोलबाला है। इसके बिना जीवन में एक क्षण भी कार्य नहीं चल सकता। गृह, पाठशाला, कक्षा, सेना, कार्यालय, सभा इत्यादि में अनुशासन के बिना एक क्षण भी कार्य नहीं चल सकता। अतः अनुशासन का अर्थ नियंत्रण में रहना, नियम बद्ध कार्य करना है। इसका वास्तविक अर्थ है, बुद्धि एवं चरित्र को सुसंस्कृत बनाना।

अनुशासन का महत्व जीवन में उसी प्रकार व्याप्त है जिस प्रकार कि भोजन एवं पानी। अनुशासन मानव जीवन का आभूषण है, श्रृंगार है। मनुष्य के चरित्र का यह सबसे शुभ लक्षण है। विद्यार्थी जीवन के लिए तो यह नितांत आवश्यक है। विद्यार्थी जीवन का परम लक्ष्य विद्या प्राप्ति है और विद्या – प्राप्ति के लिए अनुशासन का पालन बहुत आवश्यक है। अनुशासन न केवल व्यक्तिगत व सामाजिक जीवन के लिए आवश्यक है, बल्कि राष्ट्रीय जीवन का आधार भी है।

विद्यार्थी जीवन भावी जीवन का नींव है। इस जीवन में यदि अनुशासन में रहने की आदत पड़ जाए तो भविष्य में प्रगति के द्वार खुल जाते हैं। एक ओर तो हम कहते हैं कि ‘आज का विद्यार्थी कल का नागरिक है’ और दूसरी ओर वही विद्यार्थी अनुशासन भंग करके आज राष्ट्र के आधार – स्तंभों को गिरा रहे हैं।

विद्यार्थी जीवन में अनुशासन हीनता अत्यंत हानिकारक है। इससे माता – पिता का मेहनत से कमाया हुआ धन व्यर्थ चला जाता है। देश और समाज को अनुशासन हीनता से क्षति पहुँचती है। जो विद्यार्थी अनुशासन भंग करता है वह स्वयं अपने हाथों से अपने भविष्य को बिगाड़ता है। बसों को आग लगाना, सरकारी संपत्ति को नष्ट करना, अध्यापकों और प्रोफेसरों का अपमान करना, स्कूल और कालेज के नियमों का उल्लंघन करना और पढ़ाई के समय में राजनीतिक गतिविधियों में समय नष्ट करना इत्यादि कुछ अनुशासनहीनता के रूप हैं। इस अनुशासनहीनता के व्यक्तिगत, सामाजिक, नैतिक, आर्थिक तथा कुछ अन्य कारण हो सकते हैं। आज स्कूल और कालेज राजनीति के केंद्र बन गए हैं। आज विद्यार्थियों में परस्पर फूट पैदा की जाती है। ये राजनीतिक दल ऐसा करके न केवल विद्यार्थी – जीवन की पवित्रता को भंग करते है बल्कि देश में अशांति, हिंसा, विघटन की भावना उत्पन्न करते हैं। स्कूल और कालेज के जीवन में राजनीति के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाना चाहिए।

आज नवयुवकों को अपने चारों ओर अंधकार ही अंधकार दिखाई देता है। शिक्षा में कुछ ऐसे आधारभूत परिवर्तन होने चाहिए जिसमें विद्यार्थी को अपने जीवन के प्रति निष्ठा, वर्तमान के प्रति प्रेम और अतीत के प्रति श्रद्धा बढ़े। चरित्र और नैतिक पतन की जो प्रतिष्ठा हो चुकी है उसके भी कारण खोजे जाएँ और ऐसी आचार – संहिता बनाई जाए जिसका विद्यार्थी श्रद्धापूर्वक पालन कर सके।

विद्यार्थियों में शक्ति का अपार भंडार होता है। उसका सही प्रयोग होना चाहिए। स्कूल और कालेजों में खाली समय में खेलने के लिए सुविधाएँ प्राप्त की जानी चाहिए। विद्यार्थियों की रूचि का परिष्कार करके उन्हें सामाजिक और सामूहिक विकास योजनाओं में भाग लेने के लिए प्रेरित किया जाए। नैतिक गिरावट के कारण और परिणाम उन्हें बताए जाए जिससे वे आत्मनिरीक्षण करके अपने जीवन के स्वयं निर्माता बन सकें। शिक्षितों की बेकारी दूर करने की कोशिश की जानी चाहिए। अनुशासनहीनता से बचकर विद्यार्थी जब अपने कल्याण की भावना के विषय में सोचेंगे तभी उनका जीवन प्रगति – पथ पर बढ़ सकेगा। अनुशासन में बँधकर रहने पर ही वह देश एवं समाज का योग्य नागरिक बन सकता है। इसी में देश, जाति, समाज एवं विश्व का कल्याणं निहित हैं।

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