मनुष्य मनोरंजन – प्रिय है। यदि मनोरंजन नहीं होता, तो मनुष्य अपने जीवन के प्रति उदासीन हो जाता। वह एकाकी, निराश एवं उद्विग्न होकर इधर – उधर भटकता फिरता। यही कारण है कि उसने अपने मन को बहलाने के लिए कई मनोरंजन के साधन बना लिए।
ऊबे हुए मन को आनंदित करना या प्रफुल्लित करना ही मनोरंजन है। यदि मन प्रसन्न होगा, तो हम हर कार्य में दिलचस्पी के साथ मग्न हो सकते हैं। यही ध्यान में रखकर मनुष्य ने अनेक साधनों का उपयोग किया। चाहे वे खेल – कूद हो सकते हैं, तीज – त्योहार हो सकते हैं, विभिन्न प्रकार की स्पर्धाएँ हो सकती हैं, गाना – बजाना, नाच, अभिनय आदि मनोरंजन के साधन हो सकते हैं।
प्राचीन काल में भी मनोरंजन के कई साधन थे। कई प्रकार के देशी खेलों द्वारा लोग मनोरंजन करते थे। त्योहारों के माध्यम से भी कई मनोरंजन होते थे। नाच – गाना और रंगमंच पर अभिनय द्वारा खास तौर से मनोरंजन करते थे। कृष्ण – लीला, राम – लीला तथा ख्याल आदि उन दिनों मनोरंजन के खास साधन थे।
आधुनिक काल में तो मनोरंजन की बाढ़ – सी आ गई है। चलचित्र, रेडियो, दूरदर्शन, कम्प्यूटर, मोबाइल, नाटकाभिनय आदि तो हैं ही। साथ – साथ हॉकी, क्रिकेट, वॉलीबाल, बैडमिंटन, कबड्डी, खोखो आदि अनेक खेलों से मनोरंजन किया जाता है। आज घर – घर में, यहाँ तक कि सुदूर गाँवों की झोंपड़ियों में भी ये मनोरंजन के साधन पहुँच गये हैं।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि इन साधनों का सम्बन्ध प्राचीन काल से आज – तक मानव से जुड़ा हुआ है। मानव मन अपनी सुविधानुसार इन साधनों का उपयोग करके, मनोरंजन कर रहा है, जो आज के समय की माँग है।