दिनकर जी के अनुसार मानव का सही परिचय यह हैं। दिनकर जी इस कविता द्वारा यह संदेश देना चाहते हैं कि आज के मानव नें प्रकृति के हर तत्व पर विजय प्राप्त कर ली हैं। किन्तु विडंबना यह है कि, उसने स्वयं को नहीं पहचाना, अपने भाईचारे को नहीं समझा। प्रकृति पर विजय प्राप्त करना मनुष्य की साधना हैं, मानव – मानव के बीच स्नेह का बांध – बांधना मानव की सिद्धि हैं। जो मानव दूसरे मानव से प्रेम का रिश्ता जोडकर आपस की दूरी को मिटाए, वही मानव कहलाने का अधिकारी होगा।