दक्षिण घिखर के ऊपर हवा की गति बढ़ गई | थी। उस ऊँचाई पर तेज हवा के झोंके भुरभुरे बर्फ के कणों को चारों तरफ उद्धा रहे थे जिससे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। उन्होंने देखा कि थोड़ी दूर तक कोई ऊँची चढाई नहीं है। ढलान एकदम साधी नीची चली गई है। उनकी साँसे एकदम रुक सी गई थीं। उन्हें लगा था कि सफलता बहुत नज़दीक है। 23 मई 1984 के दिन दोपहर के 1 बजकर 7 मिनट पर वें एवरेस्ट की चोटी पर खड़ी थी।”