चैत का महीना था। खलिहानों में सतयुग का राज था। जगह-जगह अनाज के ढेर लगे हुए थे। यही किसानों का सफल जीवन है, जब गर्व से उनका हृदय फूलता है। सुजान अनाज भरकर देता और बेटे अंदर रख आते। कितने ही भाट और भिक्षुक भगत उसे घेरे रहते थे। उनमें वह भिक्षुक भी था, जो आठ महीने पहले भगत के द्वार से निराश लौटा था। लेकिन आज खूब-सारा अनाज देकर उसे बिदा किया।