प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘सुजान भगत’ नामक कहानी से लिया गया है जिसके लेखक प्रेमचंद हैं।
संदर्भ : प्रस्तुत वाक्य को बुलाकी अपने पति सुजान भगत से कहती है।
स्पष्टीकरण : सुजान महतो सुजान भगत बने, तो घर में उनका राज समाप्त हो गया। महत्वपूर्ण निर्णय माँ और बेटे ही लेते थे। जब द्वार पर चिल्ला रहे भिक्षुक को एक सेर अनाज तक दान देने की स्वतंत्रता सुजान खो देता है, उसे बड़ा दुःख हुआ। सबसे ज्यादा गुस्सा उसे अपनी पत्नी बुलाकी पर आया क्योंकि वह जानती थी कि कितनी मेहनत से उन्होंने इस घर को बनाया है। वे उदास होकर पेड़ के नीचे बैठकर सोचते रहते हैं, तब उनकी पत्नी आकर समझाने का प्रयत्न करती है कि घर में कमानेवाले का राज होता है। अब हम दोनों का निबाह इसी में है कि नाम के मालिक बने रहें और वही करें जो लड़कों को अच्छा लगे। आदमी को चाहिए कि जैसा समय होता है वैसा काम करे। इसी से जीवन सुगम होता है।