प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘कर्त्तव्य और सत्यता’ नामक पाठ से लिया गया है जिसके लेखक डॉ. श्यामसुन्दर दास हैं।
संदर्भ : लेखक ने कर्त्तव्य के महत्व के बारे में बताते हुए इसे कहा है।
स्पष्टीकरण : लेखक कहते हैं कि कर्त्तव्य करना हम लोगों का परम धर्म है और जिसके न करने से हम लोग औरों की दृष्टि में गिर जाते हैं। कर्त्तव्य करने का आरम्भ पहले घर से ही होता है, क्योंकि यहाँ बच्चों का कर्त्तव्य माता-पिता की ओर और माता-पिता का कर्त्तव्य लड़कों की ओर दिखाई पड़ता है। इसके अतिरिक्त पति-पत्नी, स्वामी-सेवक और स्त्री-पुरुष के परस्पर अनेक कर्तव्य हैं। घर के बाहर हम मित्रों, पड़ोसियों और प्रजाओं के परस्पर कर्त्तव्यों को देखते हैं। इस तरह समाज में जिधर देखों उधर कर्त्तव्य ही कर्त्तव्य दिखाई देते हैं।