प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘गंगा मैया से साक्षात्कार’ नामक पाठ से लिया गया है जिसके लेखक डॉ. बरसाने लाल चतुर्वेदी हैं।
संदर्भ : यह वाक्य लेखक के प्रश्न का उत्तर देते हुए गंगा मैया कहती हैं।
स्पष्टीकरण : लेखक के प्रश्न का उत्तर देते हुए गंगा मैया कहती हैं कि मेरी स्वयं समझ में नहीं आ रहा कि यह हमारा देश इतना प्रदूषित क्यों हो रहा है। वत्स, देश का वातावरण ही जब प्रदूषित हो गया, तब मैं कैसे बच सकती थी। लोगों का मन दूषित हो गया है, भक्ति और संस्कृति के आचरण के नाम पर गंगा जैसे पवित्र जल को प्रदूषित करते हैं। सारा कचरा मुझमें डालते हैं, इसलिए देश का वातावरण प्रदूषित हो गया है।