लेखिका अपने पिता जी के बारे में कहती हैं – उनकी प्रतिष्ठा थी, सम्मान था और नाम भी था। उन्होंने कई विद्यार्थियों को घर लाकर पढ़ाया भी था। उनकी दरियादिल की काफी चर्चाएँ होती थीं। एक ओर वे बेहद कोमल और संवेदनशील व्यक्ति थे, तो दूसरी ओर बेहद क्रोधी और अहंवादी भी थे।