लेखिका मन्नू भण्डारी हिन्दी प्राध्यापिका शीला अग्रवाल के बारे में कहती हैं कि उन्होंने ही उसे साहित्य की दुनिया में प्रवेश करवाया। शीला अग्रवाल सावित्री गर्ल्स कालेज में जहाँ मन्नू हाईस्कूल पास कर फस्ट इयर कालेज में भर्ती हुई थीं, वहाँ हिन्दी की प्राध्यापिका थीं। उन्होंने मन्नू की आदत मात्र पढ़ने को, चुनाव करके पढ़ने में बदला। खुद चुन-चुनकर किताबें दी। पढ़ी हुई किताबों पर बहसें की। मन्नू की साहित्यिक दुनिया शरत्-प्रेमचंद्र से बढ़कर जैनेंद्र, अज्ञेय, यशपाल, भगवतीचरण वर्मा तक फैल गयी। ‘सुनीता’, ‘शेखर एक जीवनी’, ‘नदी के द्वीप’, ‘त्याग पत्र’, ‘चित्रलेखा’ जैसी किताबों पर मंथन किया गया। शीला अग्रवाल ने मन्नू को देश की परिस्थितियाँ जानने, समझने के लिए न सिर्फ प्रेरित किया बल्कि देश की आजादी के लिए घर की चारदीवारी से खींचकर उसमें सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए भी जागृत किया।