मौसी पाठ का सारांश :
यहाँ इस कहानी में मौसी गाँव से शहर के एक मोहल्ले में आकर सब को अपनी स्वार्थहीन सेवा देती थी। बच्चे, बूढे और ज्यादा उम्र के लोग भी उसे मौसी कहकर पुकारते थे। अगर कोई बच्चा बीमार होता और | किसी के घर में शादी होती तो वहाँ सबसे पहले मौसी रहती थी। मौसी दोपहर होते ही स्कूल की फाटक पर आती। छुट्टी की घंटी बजते ही बच्चे बाहर आकर उसके साथ मिल जाते थे। यह मौसी कौन थी कहाँ से आई किसी को मालूम नहीं था।
रोज दोपहर ढलने पर मौसी नीम के पेड़ के नीचे पहुँच जाती थी। वहाँ सभी बच्चे खेलते थे। मौसी बच्चों के साथ खेलती, उन्हें कहानियाँ, चुटकुले सुनाती थी। मौसी मैला सा दुपट्टा ओढी रहती थी। उसके पास चने, टिकिया दाल-फलियाँ रहतीं जिन्हें वह बच्चों को दे देती थी। मौसी बच्चा की मौसी | बनकर उस बच्चों को | अपने बच्चे मानती
थी। कई दिनों से मौसी नहीं आयी। उसका कुछ भी पता न चला। वह मोहल्ला खाली खाली और पेड़ के नीचे सूनापन रहता था।
एक दिन मौसी ढूंढते लेखक और बाकी बच्चे एक मकान से आवाज सुने कि कई स्त्री मौसी को यहाँ से जाने के लिए कह रही थीं। मौसी की तबीयत ठीक नहीं थी। वह एक खाट पर लेटी थी। उसके बाल उलझे हुए और चेहरा पीला पड़ा था। बच्चों को गुस्सा आया। दूसरे दिन हॉकी मैच खेलकर जब बच्चे लौट रहे थे तब रास्ते में एक पुल पर मौसी को 1 बैठे देख लिया। उसके पास एक छोटी गठरी और लाठी थी। बच्चे उसे घेरकर उसकी तबीयत के बारे में पूछने लगे।
बच्चों ने मौसी का रोना सुनकर आए और वे उसे अकेली नहीं छोड़ना चाहते थे। दो। तीन लडके एक | दुकान से खाट । लाये और उस पर मौसी को बिठाकर खाट उठाकर बच्चे महल्ले की तरफ चले। बच्चों के प्यार को देखकर मौसी उन्हें छोड़कर जाना नहीं चाहती थी। बच्चों के उत्साह को देखकर उनके घरवालों को भी मौसी की चिन्ता लगी।
बच्चों के स्कूल के हेडमास्टरजी ने उसे काम देकर एक कोठरी भी उसे रहने के लिए दे दिया। बहुत साल बीत चुके हैं। अब भी मौसी वहीं है। अब वह स्कूल की प्याऊ में बैठकर बच्चों को पानी पिलाती है। ढंड के दिनों में मौसी आँगन के धूप में बैठ जाती है। वह बच्चों को कहानी सुनाती। कभी लाठी के सहारे मोहल्ले में घूमती। सभी घरों में झाँककर उनके कुशलक्षेम पूछती है। शाम होते ही मौसी अपनी कोठरी में वापस जाती है।