जैसे ही गर्मीकी छुट्टी खत्म होती और स्कूल शुरू होजाता इसि बीच पतंग उड़ाने का अनुभव भी कुछ अलग है। शाम होते ही हम दोस्तों की टोली पतंग और धागा लेकर छत पर कभी, तो कभी खुले मैदान में पतंग उडाने चले जाते। न खाने पीने की सुधन माँ का डाँटना सुनाई देता। बस्स अपने पतंग के साथ दोस्तों के साथ चले जाते कोई दोस्त पतंग पकडकर उडाने में सहायता करता तो, कोई धागा को छोड़ने और फिर लकड़ी के डंडे को कसकर बाँधने में, तभी जैसे ही पतंग आकाश किओर तेज हवा के साथ ऊपर उडने लगता मानो हमें लगता पतंग के साथ हमभी आकाश में विहार कर रहे है। जैसे हवा थम जाती अंधेरा छा जाता मैदान से वापस घर आने का मन नहीं करता था। किन्तु पिताजी की मार ने याद दिलाया और दबे पाँव, घर के अंदर चले जाते और पतंग, धागे पर किसी की नजर न पडे सोचकर उसे जानसे भी ज्यादा प्यार करते हुए एक कोने में छुपा देते थे। इसतरह पतंग उड़ाने का अनुभव एक रोमांचन है।