सड़क की रक्षा – सबकी सुरक्षा पाठ का सारांश :
विभु नौवी कक्षा में पढता था। एक दिन उसकी साइकिल खराब हो गई उसे साढे नौ तक स्कूल में पहुँचना था। सडक पर वह जल्दी-जल्दी दौडता हुआ जा रहा था। सडक पर किसी ने केले का छिलका फेंका था, उसपर विभु का पाँव पडा और वह फिसलकर गिर गया। चोट लगी, कपडे गंदे हो गए। इतने में उसे किसी ने पुकारा। उसने आसपास देखा तो कोई नहीं था। वह चौक गया, फिरसे आवाज आई, वह सडक बोल रही थी। सडक कहती है, कि मुझे भी बहुत चोट लगती है। लोग सड़क पर सफाई का ध्यान नहीं रखते। कूए कचरा जालते रहते है। निर्दयता से मुझे काटते हैं और महीनो-महीनों घाव नही भरते। इतना कहकर सडक रो पड़ी। विभु ने आसपास देखा तो, सडक को डाल वितरण विभाग सार्वजनिक कार्य विभाग और नए मकानबनानेवालों ने बुरी तरह से काट कर रखा था। उसे लगा कि सडक को सरकारी विभागों की सुरक्षा चाहिए।
विभु को सडक की व्यथा सुनकर बहुत दुख हुआ। | वह सोचता है कि सडक सबको जोड़ने का काम करती है। उसे अपनी खुद के रूप की चिंता नही बल्की लोगों के सुविधा की चिंता है। वह सडक को सांत्वना देते हुए कहता है कि, तुम मत रो माँ। मैं तुम्हारी खुशी के लिए जो भी कर सकता हूँ, वह करूंगा। ऐसा कोई उपाय बतादो जिससे तुम्हारा दुख दूर हो जाए। सडक ने कहा कि यातायात के नियमों का पालन हो और सडक की सुरक्षा का भाव लोगों के मन हो। विभु को लगा कि सडक की सुरक्षा के लिए उसपर हो रहे अन्याय को रोकना होगा। जो कोई उसपर अन्याय करेगा उसे सजा मिलनी चाहिए। लोगों को यह सोचने पर मजबूर किया जाना चाहिए कि सडक मुफ्त में सरकारी विभागों का साथ हो। अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूकता हो। सफाई की ओर ध्यान दें। आखिर में वह तय करना है कि अपने अध्यापकों की सहायता से इस दिशा में कुछ न कुछ प्रयास अवश्य करेगा।