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वीरांगना चेन्नम्मा पाठ का सारांश लिखें।

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वीरांगना चेन्नम्मा पाठ का सारांश

चेन्नम्मा का जन्म काकतीय वंश में मन 1778 में हुआ था। पिता धूलप्पा देसाई तथा माता पद्मावती। यह इक लौती संतान थी। चेन्नम्मा का अर्थ सुंदर कन्या। वीर पिता से उत्तधिकार के रूप में अनेक युद्ध कताएँ, घुडसवारी, शस्त्रीखों का अभ्यास आखेट आदि मिली थी। शिक्षा – दीक्षा राजकुल के अनुरूप हुई। उर्दू, मराठी, संस्कृत भाषाओं का अध्ययन किया। कर्नाटक राज्य में बेलगावी जिले में कित्तूर स्थापित है। उन दिनों व्यापार का प्रमुख केंद्र कित्तूर जाना जाता था। हीरे-जवाहरात खरीदने के लिए देश-विदेश के व्यापारी आते थे।

वहाँ के प्रजावत्सल राजा मल्लसर्ज थे। चेन्नम्मा का विवाह राजा मल्लसर्ज से हुआ। रानी चेन्नम्मा और मल्लसर्ज का पुत्र शिवबसवराज था। लेकिन वह बचपन में ही चल बसा। राजा मलुसर्ज की पहली पत्नी का। नाम रुद्रम्मा था। उसका पुत्र शिवलिंगरुद्रसर्ज था। पूना के पटवर्धन ने मल्लसर्ज राजा को चालाकी से बंदी बनालिया। वहीं उनकी मृत्यु हो गई। चेन्नम्मा ने राजा मल्लसर्ज के मृत्यु के बाद शिवलिंग रुद्रसर्ज को गद्दी पर बिठाया। शिवलिंग रुद्रसर्ज अपने चाटुकारों से मित्रता कर कित्तूर को हानि पहुँचाई। 11 सितंबर 1824 को राजा शिवलिंग रुद्रसर्ज की मृत्यु के बाद अंग्रेजों ने कित्तूर राज्य हडपने की योजना बनाई। राजा नि:संतान था इसलिए उसने अपने एक संबंधी से गुरुलिंगमलुसर्ज को गोद लिया था। उस समय डालहौसी गवर्नर था। अंग्रेज गोद लिए पुत्र को उत्तराधिकारी नही मानते थे।

रानी ने कित्तूर को सँभालने की कसम खाई। अंग्रेजों से युद्ध करने के लिए रानी ने तैयारी शुरु कर दी। थैकरे के साथ रानी ने अपनी स्वाधीनता का सौदा नहीं किया। कित्तूर राज्य के देशद्रोही येल्लप्पशेट्टी और वेंकटराव अंग्रेजों से मिल गए। उन्होंने कित्तूर के साथ गद्धारी की। अंग्रेजों ने उनको आधा-आधा राज्य सौंप देने का लालच दिखाया। चेन्नम्मा ने थैकरे के पत्र को फाँडकर फेंक दिया जिसमें कित्तूर राज्य का शासनभार संभालने की बात कहीं गई थी। रानी ने थैकरे को करारा जवाब दिया। कित्तूर पर थैकरे ने 500 सिपाहियों के साथ हमला किया। लेकिन रानी डरी नहीं। उसने वीर सैनिकों को युद्ध करने के लिए प्रोत्साहित किया।

थैकरे ने बीस मिनट में रानी को आत्मसमर्पण करने के लिए कहा। रानी चेन्नम्मा शेरनी की तरह टूट पडी। उनके दो हजार योद्धा थे। अंग्रेजों की सेना डर गई। थैकरे मारा गया। रानी ने बंदी अंग्रेज अफसरों के साथ उदारता का व्यवहार किया और उन्हें छोड दिया गया। लेकिन अंग्रेजोंने कित्तूर पर दोबारा आक्रमण किया। उन्होंने इसबार अधिक शक्ति के साथ और अधिक सेना के साथ आक्रमण किया और रानी को बंदी बनाया। चेन्नम्मा बेलहोंगला के दुर्ग में बंदी हो गई। वहाँ 2 फरवरी 1829 को उनकी मृत्यु हो गई। कर्नाटक की वीरांगना रानी चेन्नम्मा ने स्वतंत्रता के लिए अपना जीवन त्याग दिया। चेन्नम्मा जैसी वीर महिला के कारण कर्नाटक गर्व महसूस करता है।

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