पूर्वाक्षर का पूर्वाग्रह पाठ का सारांश –
आज के जमाने में शहरों के नाम अंग्रेजी के इनिशियलों में पहचाने जाने लगे है। अपना कन्नड पन, अपनी । पहचान, अपना अस्तित्व खो रहा है। पहले व्यक्तियों के नाम से पहले इनिशियल लगता था। आज दीर्घ का लघु बनाने की प्रवृत्ति एक फैरान बन । गई है। या फिर लोकोपयोगी विभागवालों ने गाँवों। शहरों के नाम को छोटे फलकों में बदला होगा।. संकोच प्रक्रिया की बलि बने हुए गाँवों के उदाहरण हैं। जैसे तिरूमकूडलु नरसीपुर अब टी नरसीपुर बन गया है। हमारे देश से अंग्रेजी भाषा के हट जाने से इन इनिशियलों का अर्थ ढूँढना मुश्किल हो जाएगा। अनेक खोजें करने के बार विचित्र परिणाम प्राप्त होंगे। करीदोडुन पाल्या नामक गाँव का के.डी. पाल्या संक्षिप्त रूप बन जाएगा। इसका अर्थ बहुत ही विचित्र और गाँव को बदनाम कर देनेवाला होगा। अंग्रेजी पूर्वातरों से होनेवाली हानि दुखदायक है। होलेनरसीपुरा गाँव का नाम एच.एन.पुरा बन गया है। इस गाँव के बारे में दंतकथाएँ भी बनेगी। सब अंग्रेजी अद्याक्षरों का सहारा लेकर अपना अस्तित्व खोए जा रहे है।
हम इसे अपना बदनसीब समझेंगे। चिक्कनायकन हल्ली का सी.एन. हल्ली बन गया है। चेन्नरायपट्टणा सी.आर. पट्टणा, हेग्गडदेवन कोटे एच.डी. कोटे बना दिया। इन प्रदेशों पर जिन राजाओं ने देवताओं ने राज किया उन सबको पूर्वाक्षरों में द्विपा दिया गया है। यह बडी दर्दनाक बात है। कालमुद्दनदोड्डी का के.एम. दोड्डी बन गया है, वैसे श्रवणबेलगोला एस.बी. गोला बन जाएगा विजयपुरा वि.पुरा बन जाएगा। इसका मतलब आजकल लंबे-लंबे नाम पुकारने के लिए लोगों के पास समय नहीं है। समय अभाव के कारण छोटे-छोटे नाम रखने लगे है। नामों को इसतरह विकृत बना दिया है कि हम इस विषय में अंग्रेजों में भी आगे बढ़ गए है। झूठो है यह जग बाते सिद्धांत के अनुसार आद्य नामों को अदृश्य बना रहे है। आगे चलकर हमारे सारे व्यवहारों में ह्रस्व की अभिव्यक्ति को स्टाइल चल पडेगा। जैसे टी.डी. तिरूपति देवालय वि.सी. वेंकटाचलपति एम.सी.आर. मेलुकोटे, चलुवराय स्वामी, वि.ज़ी. स्वामी वेणु गोपाल स्वामी। बिलीगिरिरंगनबेट्टा बी.आर.हिंल्स बनकर पूरा अंग्रेजी बन गया है। डी.आर. दुर्गा देवरायन दुर्गा। वहाँ रहनेवाले स्वामीजी है।
- वाई.एन. स्वामी योगानरसिंह स्वामी
- बी.एन.स्वामी भोगानरसिंह स्वामी।
नरसीपुर में रहनेवाले स्वामी जी.एन. स्वामी – गुंजा नरसिंह स्वामी। इसतरह नाम का सिर्फ लघुकरण नहीं हुआ बल्की’ उसका अंग्रेजी में नामांकरण हो गया है। कृष्णराज सागर के.आर. सागर। श्रीरंगपट्टण एस.आर. पट्टणा, रंगनाथ स्वमी आर.एन.स्वामी।
व्यक्तियों का नाम का पुकरणहो जाए यह समझ सकते है लेकिन गाँव स्थानों के नाम का इनिशियलों में ढालना ठीक नहीं है। व्यक्ति का पूरा नाम लेकर पुकारना साहस का काम बन गया है। इस संदर्भ में एक घटना लेखर के साथ पटित हुई वो ऐसी आय.पी.एस. उत्तीर्ण होकर आगे की पढाई के लिए माऊंट आबू, शिक्षा अकादमी में चले गए थे। सबको अपना अपना नाम पूरा बनाना था। लेखक ने अपना नाम पी.एस. प्रतिबादी भयंकर संपत्कुमाराचार्य रामानुजम् बनाया। अफसर ने उनको उनका नाम ऑफिस में आकर लिखने के लिए कहा। अभितक इस पद्धति को हमने पाठ्य-पुस्तकों के लिए नही अपनाया। विशेष रूप से इतिहास के पाठ्यपुस्तक के लिए। नहीं तो राणाप्रतापसिंह आर.पी. सिंह बनजाएगा।
औरंगजेब ए.जेब. समुद्रगुप्त एस.गुप्त और चंद्रगुप्त सी.गुप्त और अमात्य राक्षस ए.राक्षस बनेगा। पुलिकेशी पी.केशी. और मयूरवर्मा एम.वर्मा बनेगा। इसीतरह पाठशाला कॉलेजों के नाम अंग्रेजी वर्णो में सिकुए जाता है। हमारे नामों पर अंग्रेजी वर्णो का प्रभाव पडा है। लेकिन कन्नड के उन सुंदर नामों को संपूर्ण रूप में प्रयोग करना ही ठीक होगए इससे हमारा उच्चारण में वृद्धि होगी और नाम भी बचेंगे।