मनुष्य अपनी सुख-सुविधाओं के लिये प्रकृति से छेड़छाड़ कर रहा है। इससे प्रकृति का संतुलन बिगड़ता जा रहा है और प्रदूषण फैलता जा रहा है। प्रदूषण का अर्थ है – दूषित वातावरण । पर्यावरण के तीन अंग हैं – वायु, जल और भूमि। इनके अतिरिक्त ध्वनि प्रदूषण भी आजकल एक समस्या हो गई है। महानगरों में आज अत्यधिक वायु-प्रदूषण हो रहा है।
वायु-प्रदूषण के दो मुख्य कारण हैं – एक तो यह कि कारखानों और वाहनों से निकलने वाला धुआँ। इसमें कार्बनमोनोक्साइड गैस होती है। यह शुद्ध हवा में मिलकर उसे प्रदूषित कर देती है। कारखानों से निकलने वाला विषैला जल, शुद्ध जल को प्रदूषित कर देता है। जनसंख्या की अभिवृद्धि के कारण घरों की गंदी नालियों का पानी भी नालों व नदियों में मिल जाता है। गाँवों के लोग तालाबों
में नहाना-धोना करते हैं, जानवरों को भी नहलाते हैं। इससे भी जल-प्रदूषण होता है और बीमारियाँ फैल जाती हैं। बड़े-बड़े महानगरों में कूड़े-कचरे के कारण भी प्रदूषण व बीमारियाँ फैलती हैं।
आजकल किसान अपने खेतों में अधिक फसल प्राप्त करने की लालच में अनेक प्रकार के रासायनिक खादों को छिड़कते हैं। परिणामतः भूमि प्रदूषण होता है। शहरों में कारखानों के भोंपू, वाहनों तथा लाऊडस्पीकरों की तेज ध्वनियों से ध्वनि-प्रदूषण भी होता है। इससे कभी-कभी लोगों के बहरे होने का खतरा भी पैदा होता है। नये-नये वैज्ञानिक प्रयोगों के कारण आज धरती पर अत्यधिक गर्मी होने लगी है।
हाल ही में उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में जो उथल-पुथल मची थी, बादल फटे थे, भूकंप आया था और बाढ़ का जो भयंकर प्रकोप देखा गया था, वह सब इसी असंतुलन के कारण हुआ था।
यदि मनुष्य ने ठीक समय पर समझदारी से काम नहीं लिया तो सब-कुछ तबाह हो जायेगा। अतः हमें सचेत हो जाना चाहिए। वृक्षारोपण को अधिक महत्व देना चाहिए। गंदे पानी की नालियों को नदी में नहीं मिलने देना चाहिए। अनावश्यक शोरगुल को रोकने का प्रयास करना चाहिए। पेड़ों को नहीं काटना चाहिए। परमाणु-विस्फोट आदि को रोकने का प्रयास होना चाहिए। तभी हम प्रदूषण की समस्या को हल कर पायेंगे।