गाँधीजी पिता से माफी माँगने की बात सोची। पर पिता के सामने जाने की हिम्मत न हुई। सारी घटना पत्र में लिखकर गाँधीजी ने पिता से सज़ा माँगी, पत्र पढ़कर पिता की आँखें भर आयी। गाँधीजी ने हमेशा के लिए चोरी की आदत छोड़ दी, पिता के आँसू देखकर गाँधी को विश्वास हो गया कि पिता ने मुझे क्षमा कर दिया है।