इस कविता के कवि दवारिकाप्रसाद माहेश्वरी है कवि सूरज तारे के तरह झिलमिल चमकने की आभिलाषा है।
फूलों की तरह महककर चिडियों की तरह चहककर वन उपवन को गुंजित करना और कोयल सा कुसकने की आभिलाषा है। आसमान से निर्मलता चंद्र से शीतलता धरती से सहिषगुता पर्वत से दृढता लेने की अभिलाषा है।