लेखक का इस वाक्य से आशय है की जिस धूल को वीर योद्धा अपनी मातृभूमि के प्रति श्रद्धा प्रकट करते हैं, धूल मस्तक पर लगाते हैं, किसान धूल में ही सन कर काम करता है उस धूल से बचने की कोशिश की जाती है। नगरीय लोग इसे तुच्छ समझते हैं। चाहे वह देश की धूल को माथे से न भी लगाए परंतु उसकी वास्तविकता से परिचित हो।