आदमी नामा' कविता में मानव के विविध रूपों पर प्रकाश डाला गया है। कवि के अनुसार मानव में अनेक संभावनाएँ छिपी हुई हैं। उसकी परिस्थियाँ और भाग्य भी भिन्न हैं जिसके कारण उसे भिन्न-भिन्न रूपों में जीवन जीना पड़ता है।
(1)
इन पंक्तियों में में नजीर ने कहा है कि इस दुनिया में सभी आदमी हैं। बादशाह भी आदमी है तथा गरीब भी आदमी ही है। मालदार भी आदमी ही है और कमजोर भी आदमी है। जिसे खाने की कमी नही है वो भी आदमी है और जिसे मुश्किल से रोटी मिलती है वो भी आदमी ही है।
(2)
इस भाग में नजीर ने आदमी के विभिन्न कामों के बारे में बतलाया है। मस्जिद का भी निर्माण आदमी ने किया है और उसके अंदर उपदेश देने का काम भी आदमी ही करते हैं साथ ही वहां जाकर कुरान-नमाज़ भी आदमी ही अदा करते हैं। मस्जिद के बाहर जूतियाँ चुराने का काम आदमी ही करता है तथा उनको भगाने के लिए भी आदमी ही रहता है।
(3)
इस भाग में नजीर ने बताया है की एक आदमी दूसरे की जान लेने में लगा रहता है तो दूसरा आदमी किसी की जान बचाने में लगा रहता है। कोई आदमी किसी की इज्जत उतारता है तो मदद की पुकार सुनकर भी उसे बचाने कोई आदमी ही आता है।
(4)
इन पंक्तियों द्वारा स्पष्ट किया है की इस दुनिया सब कुछ आदमी ही करते हैं। आदमी ही आदमी का मुरीद है तथा आदमी ही आदमी का दुश्मन। बुरे और अच्छे दोनों आदमी ही कहलाते हैं।